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मदजोबन

मदजोबन म्हं भर कै बेरण, चढ़ बैठी अटारी, तेरी गळी म्हं, हाडैं मंजनू, मारैं सै किलकारी।’ दोस्तो मेरे इस मसाला गीत नै जो कोय बडिया गळे वाळा गायक मिलग्या तो यो डी.जे पै कती धूम मचादेगा अर सारयां के पां ठादेगा। -दोस्तो एक बै पप्पू नै गवांड की एक सुथरी छोरी ते कसुत्ता प्यार ओग्या। पप्पू रोज गवांड म्हं जाकै कदे उनके टवैल पै, कदे गन्या बटोड़यां म्हं मड कै प्यार करण लाग्या। छोरी के बाब्बू नै जद उनकी रासलीला की भणक लाग्गी तो उसनै पप्पू दूसरी जात का ओण के कारण छोरी के गाल पै दो-चार ओळथे टका कै उसका ब्या किसी ओर तै कर दिया। दोस्तो भगवान के ऐसे करणे ओए उस छोरी का ब्या पप्पू के गाम म्हंई ओग्या। उसका घरआळा शहर म्हं नोकरी करै था अर ओड़े ते पांच-सात दिन बादइ आवै था। पप्पू पै कड़या टिक्या जा था। मेरा बटा दो तीन-मिन्नै बाद रात नै फेर ब्यालड़ी बहु धोरै जाण लाग्या। रात नै एक बै उस छोरी धोरै ओ गयाइ था के उपर ते उसका घरवाळा आग्या तो छोरी नै पप्पू अपणी खाट तळै लकोलिया। छौरी का घरवाळा कई दन बाद आया था। ओ उसते प्यार करदा ओया बोल्या घणे दिन का रूक्या पड़या था, आज तो मेरे म्हं इतना जोस आरया सै या खाट जरूर टुटैगी। ‘ओ भाई मन्नै बचाईये, मैं थारे निच्चै सूं।’ पप्पू डरदा ओया खाट तळे ते बोल्या।

तेरी गळी म्हं, हाडैं मंजनू,

आंख्या म्हं कटार, पोरी-पोरी मटके,
ढुंगे नै हलावै, छोरी मारै झटके,
कई पाग्ल ओगे, कई गिरे कटकै,
म्हारे गाम म्हं आरी छोरी नाच्चै डटकै,
नाच्चै डटकै…..नाच्चै डटकै….नाच्चै डटकै।
( अतिरिक्त मुखड़ा अंतरा रैप स्टाईल में। )

मदजोबन म्हं भर कै बेरण, चढ़ बैठी अटारी,
तेरी गळी म्हं, हाडैं मंजनू, मारैं सै किलकारी। -(टेक)

आंख्या सुरमां घाल, छोरी पाणी नै जावै सै,
मखन बरगा गात लेरी, कुणसी दहीं खावै सै,
तेरे नैना की मार बावली पड़री सब पै भारी,
तेरी गळी म्हं, हाडैं मंजनू, मारैं सै किलकारी।

भरे खजाने रितैं कोन्या, जितने सूठ सुवां बैरण,
घणी पजेब घड़ै रक्खी, पैर कै मन्नै दिखा बैरण,
म्हारे गाम म्हं आ जाइये, तेरी देक्खुं मैं फुलकारी,
तेरी गळी म्हं, हाडैं मंजनू, मारैं सै किलकारी।

कुणबा सारा राज्जी सै इब, मूं दखाई ओज्यागी,
अगले सामण म्हं तेरी, मांग भराई ओज्यागी,
नफे सिंह गंगनपुरीये ते, ला बैठी तों यारी,
तेरी गळी म्हं, हाडैं मंजनू, मारैं सै किलकारी।
मदजोबन म्हं भरकै बेरण चढ़ बैठी अटारी,
तेरी गळी म्हं हाडैं मंजनू, मारैं सै किलकारी।
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नफे सिंह कादयान गगनपुरिया, mob. 9991809577, nkadhian@gmail.com
रागनी पुस्तक :- छाग्या अरयाणा से, ISBN- 978-93-5351-709-0

रागनी

‘माट्टी आळे आरे टुट्टे, गैसां पै दाळ गळारया सै, चुगरदे नै चमचम ओरी, नया जमान्ना आरया सै।’ साथियों मेरे जिसे कविताई करण आळे तो यूंए टपारे मारया करैं, इननै ज्यादां सीरयस लेण की जरूरत कोन्या। मैं अपणे लेखन म्हं आज-कैल के मौल के मताबक कई बे नकारात्मक भी चेपदयूं पर यो मेरा स्भा ना सै। या रागणी मन्नै उनके वास्तै बणाई जो पराणे जमान्नै नै बडिया बतावैं, अर नोवे म्हं घणेई ऐब काडदे रहां। -दोस्तो एक बै पप्पू का बाब्बु पराणे जमान्ने नै बडिया बतांदा ओया उसतै बोल्या-‘बेटा आज-कैल कोई जमान्ना सै। थोड़-थोड़ चोर अच्चके अथयारां के बळ पै माणसा नै लूटरे। अंग्रेजा के टेम म्हं तेरी मां सोवा मण सोन्ना पा कै बारां कोस तक घूम आवै थी, मेरे सास्सू के की किसकी मजाल थी जो आथ पालैथा।’ ‘रै बाब्बु इतणी घणी ना फैंक जो ओट्टी ना जावैं। मां तो कवै यो जेरोया तेरा बाब्बू मेरी तबीज्जी बेच कै इस कच्चे मकान का बालण लाया था। सोवा मण तो छोड जै थारे पै एक किलो सोन्ना भी ओंदा तो अम लोगां कै खेतां म्हं दयाडि़यां नै करां थे, दो-चार किलड़े म्हारे पै भी ओंदे।’

माट्टी आळे आरे टुट्टे

माट्टी आळे आरे टुट्टे, गैसां पै दाळ गळारया सै,
चुगरदे नै चमचम ओरी, नया जमान्ना आरया सै।

बुग्गी झोट्टे ऊंट बैठगे, कारां म्हं न्यार ल्यावै सैं,
फाळी आळे अळ खूगे इब, टैक्टर खेत बणावैं सै,
पनियारी के कुए छुट्टे, फवारयां निच्चै नावैं सै,
रहट खींचै ना मोटे ओगे, बाब्बे योग करावैं सै,
साद्दा खाणा छोड गाबरू, पिज्जे बर्गर खारया सै,
चुगरदे नै चमचम ओरी, नया जमान्ना आरया सै।

नोवे जमान्ने की नारां, भाई घणी लिखि पढ़ी ओगी,
सेरां की पंचायत लगे जड़ै, छात्ती ताण खड़ी ओगी,
लत्यां डाळा यार बदल लें, मबैल्लां म्हं घड़ी ओगी,
तेल्ली आळे तिन्नो मरजो, जित्त भी अड़ी, अड़ी ओगी,
ब्या करवा कै छोडण का इब, इननै फैसन बारया सै,
चुगरदे नै चमचम ओरी, नया जमान्ना आरया सै।

दूध दहीं का चा कोन्या, चोळां म्हं सक्कर थुड़री सै,
पूरी बोतल किल्ली ठादे, ठेक्यां मंडळी जुड़री सै,
टब्बर भुखा बेठया रैजा, घर म्हं जनानी कुढ़री सै,
नफे सिंह गंगनपुरीये की, अक्ल पाच्छै मुड़री सै,
कर्जे के म्हं डुब्या माणस, झटते फांसी खारया सै,
चुगरदे नै चमचम ओरी, नया जमान्ना आरया सै।
माट्टी आळे आरे टुट्टे, गैसां पै दाळ गळारया सै,
चुगरदे नै चमचम ओरी, नया जमान्ना आरया सै।
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नफे सिंह कादयान गगनपुरिया, mob. 9991809577, nkadhian@gmail.com
रागनी पुस्तक :- छाग्या अरयाणा से, ISBN- 978-93-5351-709-0

छाग्या अरयाणा

धोबी घाट पै सूकणा पादयूं, मैं कांडु इसकी एंड सै, म्हारे कालज आळी छोरी, तेरा जुणसा बोए फ्रैन्ड सै।’ दोस्तो मेरी या रागणी कालज के उन एंडी छोरयां वास्ते सै जो छोरियां पाछै आपस म्हं गुत्थम-गुत्था ओवैं। या रागणी रेप स्टैल म्हं भी गाई जा सकै पर इसकी टेक म्हं ते ‘मै’ ‘सै’ सबद अटाणे पड़ागे। या इस तरयां बणैगी- ‘धोबी घाट पै सूकणा पादयूं, कांडु इसकी एंड, म्हारे कालज आळी छोरी, तेरा जुणसा बोए फ्रैन्ड।’ -साथियो एक बे पप्पू के तीन-चार दोस्त कालेज के मदान म्हं बैठ कै बड्डी-बड्डी फैंकरे थे। उनमै ते एक बोल्या- ‘मेरे बाब्बू तो इतना मीर सै म्हारे घर म्हं रोज पचास पेट्टी तो नौकर चाकर दारू की पीवैं।’ दूसरा दोस्त बोल्या- ‘बस थारै पचास पैट्टीइ लाग्गैं, म्हारे घर म्हं तो रोज दो-तीन ट्रक उतरैं सै। म्हारी तो भैंसा भी जद तक दूध देण तै नाटदी रवां जद तक अम कुट्टी म्हं बीयर की सान्नी करकै ना देंदे।’ पप्पू बोल्या- ‘मेरा बाब्बू तो खरबापति सै अर अम थारी डाळ नसे कोन्यां करैं।’ ‘तेरा बाब्बू के काम करै भाई जो खरबपति सै।’ एक दोस्त नै पप्पू तै बुज्या। ‘मेरी सास्सूक्यो ओर के करै, थारे घर तै खाली बोतलां खरीद कै कबाड़ी ते बेच्चै।’ पप्पू बोल्या।

म्हारे कालज आळी छोरी

धोबी घाट पै सूकणा पादयूं, मैं कांडु इसकी एंड सै,
म्हारे कालज आळी छोरी, तेरा जुणसा बोए फ्रैन्ड सै।

अडवारयां का वारा टॉमी, म्हारे कोलज म्हं आण लग्या,
झोल्ली दे कै पास बुलावै, तन्नै माल पियाण लग्या,
पिज्जे बर्गर चाट पकोड़े, कन्टीना म्हं लेजाण लग्या,
चालिस किल्लो वाळा टिंडा, देख मन्नै मुस्काण लग्या,
रफल दुनाळी जिस दिन ठाली, पटज्या इसकी टैंड सै,
म्हारे कालज आळी छोरी, तेरा जुणसा बोए फ्रैन्ड सै।

लैंड क्रुजर लेकै चाल्लै, गाळां म्हं धूळ उड़ा राक्खी,
चार टेटरू उपर धरले, लाल परी चड़ा राक्खी,
कमीणे कांदू करैं चाकरी, जय जयकार करा राक्खी,
बाब्बु दौलत एैश करणिये, सुक्की रोब बणा राक्खी,
चोरी का धन लाठी के गज, पल्लै कुणसी जैंड सै,
म्हारे कालज आळी छोरी, तेरा जुणसा बोएफ्रैन्ड सै।

पस्तोलां ठाकै चल्या करैं थे, घणे कुन्जे ला दिये,
कल्ला सेर कालज म्हं घुम्मै, गिदड़ा नू समझा दिये,
ज्यादां खोरू काटण आळे, मन्नै बंदे बणा दिये,
इब बुग्गी जोड़े जांवां खेत म्हं, मन्नै काम पै ला दिये,
नफे सिंह गंगनपुर आळा, सब कामां म्हं ट्रेंड सै,
म्हारे कालज आळी छोरी, तेरा जुणसा बोए फ्रैन्ड सै।
धोबी घाट पै सूकणा पैदयूं, कांडु इसकी एंड सै,
म्हारे कालज आळी छोरी, तेरा जुणसा बोएफ्रैन्ड सै।

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नफे सिंह कादयान गगनपुरिया, mob. 9991809577, nkadhian@gmail.com
रागनी पुस्तक :- छाग्या अरयाणा से, ISBN- 978-93-5351-709-0

दोस्तो 102 पेज की मेरी हरयाणवी रागनियों की पुस्तक ‘छाग्या अरयाणा’ प्रिन्ट और ईबुक के रूप में प्रकाशित हुई है जो हरियाणवी मां बोली को देश विदेश में पहचान दिलवाने वाले गायकों और समीक्षकों, सम्पादकों को निशुल्क भेजी जा रही है। सीमित प्रिंट प्रतियां होने के कारण ईबुक pdf भी भेजी जा रही है। कृप्या पुस्तक का अवलोकन कर अपना बहुमूल्य सुझाव दे कि मैं अपने प्रयास में कहां तक सफल हुआ। mob 9991809567, ईमेल पता nkadhian@gmail.com

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ग़ज़ल

वो नदी डूब गई लेकर कई मकानों को,
बस हम ढूंढते उसमें पैरों के निशानों को।

कहाँ तेरा वादा, रखेंगे दिल में बसाकर,
जरा देख तो आकर टूटे अफसानों को।

इस जुल्फ में रख या नजरों से गिरा दे,
अब फर्क क्या है रिन्द के दीवानों को।

ये कहाँ आ गया वक़्त के साथ चलकर,
सब रास्ते जाते हैं आखिर श्मशानों को।

ये वो चिंगारी है जो शोलों क़ो जगा देगी,
तूफ़ां में थाम कर रखना बादवानों को।

वक्त के साथ मिट जाते ‘पूरी’ हुश्नों जमाल,
याद कब तक रखें गुजरे अफसानों को।

Geet

क्या हसीन शामें थी, सुरमई उजाले थे,
यारों कि बस्ती, डेरे तितलियों ने डाले थे।

आसमां मिले वहाँ जहाँ धरा का छोर हो,
क्या अरमां था हमने क्या सपने पाले थे।

कोई शख्स था तूफानों का रुख मोड़ गया,
इन हवाओं में चिराग कहाँ जलने वाले थे।

न शिकवा रहा किसी से न कोई गिला,
हमने जमाने के रंग खूब देखे भाले थे।

पत्थरों पर चलने का हुनर आ ही जाता है,
बढ़ते रहे आगे सदा बेशक पावँ में छाले थे।

तेरे शहर में ‘पुरी’ अमनों सकूँ मिलता कहाँ,
सलीबों पर गिरे पत्थर हमने ही उछाले थे।